Vrindavan Ras Charcha

होरी के रसिया

आज बिरज में होरी रे रसिया ।।

उतते आये कुँवर कन्हैया,
इतते राधा गोरी रे रसिया ।।

उड़त गुलाल अबीर कुमकुमा,
केशर गागर ढोरी रे रसिया ।।

बाजत ताल मृदंग बांसुरी,
और नगारे की जोरी रे रसिया ।।

कृष्णजीवन लच्छीराम के प्रभु सौं,
फगुवा लियौ भर झोरी रे रसिया ।।


सजनी भागन ते फागुन आयो, मैं तो खेलूँगी श्याम सँग जाय ।।

खेलूँ आप खिलाऊँ लाल को,
मुख पे मलूँ गुलाल ।।

वाने भिजोई मेरी फूलन अँगिया,
मैं तो भिजोऊँ वाकी पाग ।।

चोबा चन्दन अतर अरगजा,
अबीर गुलाल उड़ाय ।।

बरज रही बरज्यो नहिं मान्यों,
हियरा में उठ्यो अनुराग ।।

फेंट गुलाल हाथ पिचकारी,
करत अनौखे ख्याल ।।

जो खेलो तौ सूधे खेलौ,
न तो मारूँगी गुलचा गाल ।।

कृष्ण जीवन लच्छी राम प्रभु सौं,
मानूँगी भाग सुहाग ।।


रसिया होरी में मेरे लग जायेगी, मत मारै दृगन की चोट ।।

अबकी चोट बचाय गयी मैं,
कर घूँघट की ओट ।।

मैं तो लाज भरी बड़े कुल की,
तुम तो भरे बड़े खोट ।।

पुरुषोत्तम प्रभु ह्वाँ जाय खेलो,
जहाँ तिहारी जोट ।।


रसिया भँवर बन्यौ बैठ्यौ रहियो रे, चल बस मेरी प्यौसार ।।

नथ गढाऊँ गुरदा गोखुरू रे,
खँगवारी के छल्ला छार ।।

पलका की दऊँ चाकरी रे,
अँचरा ते करूँ ब्यार ।।

पुरुषोत्तम प्रभु की छवि निरखै,
तोते नैनां लड़ाऊँ द्वै चार ।।


रसिया आँखिन में मेरे करके मत डारे अबीर गुलाल ।।

अछन-अछन पाछे अलबेली,
निरखि नवेली बाल ।।

नयो फाग जोबन रस भीनो,
करत अटपटे ख्याल ।।

दया सखी घनश्याम लाड़िले,
भुज भरि करी निहाल ।।


गोरी कुँजन में आज होरी मची है, कहा बैठी है माँग सँवारे ।।

मेरी कही जो साँच न मानै,
सुन लै ढफ धुँधकारे ।।

उठ सजनी चल फाग खेल लै,
प्रीतम तोहि पुकारै ।।

नारायण तब बात बनेगी,
तू जीतै पिय हारै ।।


बिहारी छाँड़ि दै होरी में, मो सौं बुरी हँसन की बान ।।

या ब्रज घर-घर मेरी-तेरी,
करत कुचरचा कान ।।

औरन की तो कहा परेखौ,
घर के करत गुमान ।।

तुम तौ छैल विदित या जग में,
तुमरी नहिं कछु हान ।।

निशिदिन सासुल डाटै हम कूँ,
औ रखनी कुलकान ।।


सखी री! मोरमुकट वारो साँवरिया मोय मिल्यो साँकरीखोर ।।

गली साँकरी ऊँची-नीची घटियाँ,
दई है मटुकिया फोर ।।

रतन जटित मेरी इंडुरी जामे,
हीरा लाख करोर ।।

एकौ हीरा जो खोवै,
तेरी सब गायन कौ मोल ।।

जैसी बजै तेरी बाँसुरी रे,
मेरे नूपुर की घनघोर ।।

कृष्ण जीवन लच्छीराम के प्रभु पर,
डारूँगी तिनका तोर ।।


छाँड़ो डगर मेरी चतुर श्याम, बिंध जावोगे नैनन में ।।

भूल जाओगे सब चतुराई,
मारूँगी सैनन में ।।

जो तेरे मन में होरी खेलन की,
लै चल कुँजन में ।।

चोबा चन्दन और अरगजा,
छिरकूँगी फागुन में ।।

चंद्रसखी भज बालकृष्ण छबि,
लागी है तन मन में ।।


ऐसो चटक रंग डार्‌यौ श्याम, मेरी चुनरी में पड़ गयो दाग ।।

मोहूँ ते केतिक ब्रजसुंदर,
उनसों न खेलै फाग ।।

औरन को अचरा न छुवै,
या की मोही सौं पड़ गई लाग ।।

श्रीबलिदास वास ब्रज छोड़ो,
ऐसी होरी में लग जाय आग ।।


बिहारी काढ़ि दै मेरी (बेदरदी), करकत आँख गुलाल ।।

सुरझावन दै उरझी मोहन,
कंकन सों उरमाल ।।

अति अधीर पीर नहिं जानत,
मलत अबीर गुलाल ।।

ललित किशोरी रंग कमोरी,
ढोरत निठुर गोपाल ।।


लाख लोग नगरी बसौं रसिया बिन कछु न सुहाय ।।

रायबेल केतकी मोंगरा, फूली बाग बहार।
सबै फूल फीकै लगैं, बिना बलम भरतार।
देखूँ हूँ दीखै नहिं वह कित, गयो नजर बचाय।
देख सलोनो गाड़रु, सारिस ज्यों मँडराय।
बौरी सी दौरी फिरूँ, मोय घर अँगना न सुहाय।
ढूँढ़न के लाले परे, सागर के हिये समाय।


रसिक छैल नन्द कौ री, हेली नैनन में होरी खेलै ।।

भरि अनुराग दृष्टि पिचकारी, आय अचानक मेलै।
और कहा लगि कहौं सब विधि, करत भाँवती केलैं।
रूम झूम रसिया आनंदघन, रिझै भिजै रस झेलै।


पिय प्यारी दोउ आज होरी खेलत कालिंदी के तीर ।।

हँस-हँस बदन अरगजा डारत, मारत मूठ अबीर।
चलत कुमकुमा रंग पिचकारी, भीजि रहे तन चीर।
जनु घन दामिनि रूप धरै हैं, गोरे श्याम शरीर।
बजत अनेक भाँति मृदु बाजै, होय रही अति भीर।
नारायण या सुख निरखै बिन, कौन धरे मन धीर।


बरज रही नहीं मान्यौ रंगीलौ रंग डार गयौ मेरी बीर ।।

तान दई मम तन पिचकारी, फार्‌यो कंचुकि चीर।
चूनर बिगर गयी जरतारी, कसकत दृगन अबीर।
मृदु मुसक्यान कमल नैनन के, छेदत तीर गँभीर।
क्षण-क्षण छुअत छैल छतियन कौ, परसत सकल शरीर।
निकस्यो निपट निडर ब्रजवल्लभ, निठुर प्रभु बेपीर।


नन्द के गैल चलत मोय गारी दई तेरो आवै अचंभौ मोय ।।

निडर भयौ गलियन में डोलै, तोसों और न कोय।
लै पिचकारी सँग ही सँग आवै, सबरी दई भिजोय।
आनंदघन रसिया रस लोभी, अब न छोड़ूँगी तोय।


हेरी मेरो श्याम भँवर मन लै गयो मेरे नैनन में मँडराय ।।

पनिया भरन मैं घर ते निकसी, (मेरे) बाँये बोल्यो आय।
पनघट पै ठाढ़ो भयौ, मोय भर-भर देय उचाय।
कैसे तो फूटै याकी गागरी, याय मिलै नन्द को लाल।
है कोऊ मन की भाँवती, जो श्याम हि देय मिलाय।
जुगल रूप छबि छैल की, रस सागर रह्यौ लुभाय।


होरी को खिलार सारी चूनर डारी फार ।।

मोतिन माल गले सों तोरी, लहँगा फरिया रंग में बोरी।
कुमकुम मूठा मारे मार, सारी चूनर डारी फार।।
तक मारत नैनन पिचकारी, ऐसो निडर ढीठ बनवारी।
कर सों घूँघट पट दै डार, सारी चूनर डारी फार।।


नैननि में पिचकारी दई मोहि गारी दई होरी खेली न जाय ।।

क्यों रे लंगर लंगराई मोते कीनी, केसर कीच कपोलन दीनी,
लिये गुलाल ठाड़ो मुसकाय, होरी खेली न जाय।।
नेक न कान करत काऊ की, नजर बचावै बलदाऊ की,
पनघट सों घर लो बतराय, होरी खेली न जाय।।


आवै अचक मेरी बाखर में होरी को खिलार ।।

अचक-अचक मेरे अँगना आवै, आप नचै और मोय नचावै,
देखत ननदुल खोल किंवार, होरी को खिलार।।
डारत रंग करत रस बतियाँ, सहज हि सहज लिपट जाय छतियाँ,
यह दारी तेरो लगवार, होरी को खिलार।।


छबीली नागरी हो धन तेरो परम सुहाग ।।

तेरेइ रंग रंग्यौ मन मोहन, मानत है बड़भाग।
आज फबी होरी प्रीतम संग, लखियत हैं अनुराग।
श्रीरूपलाल हित रूप छके दृग, उपमा को नहिं लाग।।


डगर चलत मसकै मेरो पाँव तेरौ कैसो सुभाव ।।

क्यों मोहन गोहन नहिं छाँड़ै, गागर में काँकर दे फोरै।
साँकरी गली लगावै दाव, तेरौ कैसो सुभाव।।
साँकरी गली अचानक घेरी, बैयाँ पकर मेरी गागर गेरी।
मानत नहिं चौगुनो चाव, तेरौ कैसो सुभाव।।


अचक आय उँगरी पकरी याने कैसी करी ।।

अँगुरी पकर मेरो पहुचो पकर्‌यो, कित ह्वै जाऊँ गिरारो सकर्‌यो,
लिपटत लाग रही धकरी, याने कैसी करी।।
छतियन कीच दई केसर की, मुरकत गूँज खुली बेसर की,
मोतिन माल भली बिखरी, याने कैसी करी।।
शालिग्राम देखियत वारौ, श्रीमुखचन्द्र कमरिया वारौ,
अंतर को कारो सिगरी, याने कैसी करी।।


ब्रजमण्डल देस दिखाय रसिया

तेरे बिरज में मोर बहुत हैं, कोंहक मोर फटै छतिया ।
तेरे बिरज में गाय बहुत हैं, पी-पी दूध भई पटिया ।
तेरे बिरज में ज्वार-बाजरो, हरी-हरी मूँग उरद कचिया ।
तेरे बिरज में बंदर बहुत हैं, सूनो भवन देख धसिया ।
पुरुषोत्तम प्रभु की छवि निरखै, तेरे चरन मेरो मन बसिया ।


ढफ बाजे कुँवरि किशोरी के

तैसी संग सखी रंग भीनी, छैल-छबीली गोरी के ।
हो हो कहि मोहन मन मोहत, प्रीतम के चित चोरी के ।
वृन्दावन हित रूप स्वामिनी, कर डफ गावत होरी के ।


अंग लिपट हँसि हा-हा खाय होरी खेली न जाय

भर-भर झोर अबीर उड़ावै, केसर कुमकुम मुख लपटावै,
या होरी को कहा उपाय, होरी खेली न जाय ।
कोरे माटन केशर घोरी, पचरंग चूनरि रंग में बोरी,
घर जाऊँ सुने सास रिसाय, होरी खेली न जाय ।।

घूँघट में पिचकारी मारै, सारी चोरी लहँगा फारै,
मुख सों अंचल देय हटाय, होरी खेली न जाय ।।
ग्वालबाल सखियन ने घेर्‌यो, अतर अरगजा नैनन गेर्‌यो,
कनक कलस रंग सिर सों च्वाय, होरी खेली न जाय ।।

सखियन पकरे नन्द कौ लाला, लाली रूप बनायो बाला,
काजर मिस्सी दई लगाय, होरी खेली न जाय ।।
साड़ी औ लंहगा पहिरायो, टिकुली सेंदुर मांग भरायौ,
सीस ओढ़ना दियो उढ़ाय, होरी खेली न जाय ।।

हाथन मेंहदी पांय महावर, बिछुवा पायल पहरे गिरधर,
अद्भुत शोभा बरनी न जाय, होरी खेली न जाय ।।
कान झुबझुबी बाला वारी, नथुनी बलका बेसर धारी,
सोलह सिंगार दियो रचाय, होरी खेली न जाय ।।

जसुदा ढिंग लालन धर धाई, दीन उरहनो बहुत खिजाई ।
अवध बिहारी मन ललचाय, होरी खेली न जाय ।।


बरसाने महल लाड़िली के

और पास वाके बाग-बगीचा, बिच-बिच पेड़ माधुरी के ।
तिन महलन विहरत पिया-प्रीतम, निशिदिन प्रिया चाड़िली के ।
वृन्दावन हित रंग बरसत है, छिन-छिन रस जु बाढ़िली के ।


बरसाने चल खेलैं होरी

पर्वत पे वृषभानु महल है, जहाँ बसे राधा गोरी ।
चोबा चन्दन अतर अरगजा, केशर गागर भर घोरी ।
उतते आये कुँवर कन्हैया, इत ते राधा गोरी ।
सूरदास प्रभु तिहारे मिलन कूँ, चिरजीवो मंगल जोरी ।


गहरे कर यार अमल पानी

कूंड़ी सोटा दाब बगल में, भाँग मिरच की मैं जानी ।
इत मथुरा उत गोकुल नगरी, बीच में यमुना लहरानी ।
लै चलि हैं बरसाने तोकूँ, होय भानुघर मेहमानी ।
तोय करैं होरी को भरुवा, हम होंगे तेरे अगवानी ।
पुरुषोत्तम प्रभु की छबि निरखैं, रस की है ह्वाँ रजधानी ।


किन रंग दीनीं रे रसिया केसर की बूँदन में, अँगिया किन रंग दीनी रे

देखेंगी मेरी सास ननदिया, यह कहा कीनी रे ।
चोबा चन्दन और अरगजा, सौंधै भीनी रे ।
रसिक प्रीतम अभिराम श्याम ने, भुज भर लीनी रे ।


दरसन दै निकसि अटा में ते

लट सरकाय दरस दै प्यारी, निकस्यो चंद घटा में ते ।
कोटि रमा सावित्री भवानी, निकसी चरन छटा में ते ।
पुरुषोत्तम प्रभु यह रस चाख्यो, माखन कढ़्‌यो मठा में ते ।


दरसन दै नन्द दुलारे

मोर मुकुट कानन में कुंडल, होठन बंसीवारे ।
हाथ लकुट कम्मर की खोई, गौअन के रखवारे ।
चन्द्रसखी भज बालकृष्ण छवि, जीवन प्राण हमारे ।


ढफ बाज्यो छैल मतवारे को

ढफ की गरज मेरो सब घर हाल्यो, हाल्यो खंभ तिवारे को ।
ढफ की गरज मेरो सब तन हाल्यो, हाल्यो झुब्बा नारे को ।
पुरुषोत्तम प्रभु की छबि निरखै, ये रसिया नन्द द्वारे को ।


अलबेली कुँवरि महल ठाड़ी

गहे पिचक रंग भरत श्याम को, उतते प्रीति भरन गाढ़ी ।
हो-हो कहि मोहन मन मोहत, मनहुँ रूप-निधि मथि काढ़ी ।
वृन्दावन हित रूप स्वामिनी, कर डफ गावति छवि बाढ़ी ।


बन आयो छैला होरी कौ

मल्ल काछ सिंगार धर्‍यो है, फेंटा सीस मरोरी कौ ।
सोंधों भर्‍यो उपरना सोहै, माथे बिंदा रोरी कौ ।
पुरुषोत्तम प्रभु की छबि निरखै, ये रसिया या गोरी कौ ।


नेक आगे आ श्याम तोपे रंग डारूँ

रंग डारूँ तेरे मरवट माढ़ूँ, गालन पै गुलचा मारूँ ।
एढ़ी-टेढ़ी पगिया बाँधूं, पगिया पै फुलरी पारूँ ।
पुरुषोत्तम प्रभु की छबि निरखै, तन मन धन जोवन वारूँ ।


रसिया को नार बनावो री

कटि लँहगा उर माँहि कंचुकी, चूनर सीस ओढ़ावो री ।
बाँह भरा बाजूबंद सोहै, नथ बेसर पहिरावो री ।
गाल गुलाल नयन में कजरा, बेंदी भाल लगावो री ।
आरसी छल्ला औ खँगवारी, अनवट बिछुवा लावो री ।
नारायण तारी बजाय के, यशुमति निकट नचावो री ।


पनघटवा कैसे जाऊँ री

पनघट जाऊँ पनघट जैहै, बिन भीजै नहिं आऊँ री ।
केसर कीच मची गैलन में, कैसे जल भर लाऊँ री ।
सुंदर स्याम गुलाल मलेंगे, लाजन मरि-मरि जाऊँ री ।
कृष्ण पिया सों मेरो मन मान्यो, का विधि नेह निभाऊँ री ।


कान्हा धरें मुकुट खेलैं होरी

उतते आये कुँवर कन्हैया, इतते राधा गोरी ।
फेंट गुलाल हाथ पिचकारी, मारत भर-भर झोरी ।
रसिक गोविन्द अभिराम श्यामघन, जुग जीवौ यह जोरी ।


यमुना तट श्याम खेलैं होरी

नवल किशोर श्याम घन सुंदर, नवल बनी राधा गोरी ।
नवल सखा गये नव उमंग में, नवल रंग केसर घोरी ।
नवल सखी ललितादिक हिलमिल, नवल त्रिया गावैं होरी ।
नवल गुलाल अबीर कुमकुमा, घुमड़्यो गगन चहूँ ओरी ।
कृष्णपिया नवजोवन राधे, चिरजीयो जुग-जग जोरी ।


छैला तोय बुलाय गई नथ वारी

वा नथ वारी को लम्बो गिरारो, ऊँची अटा बैठक न्यारी ।
वा नथ वारी को नाम न जानूँ, मोय बताई तेरी घरवारी ।
कूंड़ी सोटा लै चल रसिया, खूब करै खातरदारी ।
रसिक गोविन्द अभिराम श्यामघन, रोम-रोम तोपैं वारी ।


होरी में लाज न कर गोरी

हम ब्रज के रसिया तुम गोरी, भली बनी है यह जोरी ।
जो हमसे सूधे नहिं बोलो, यार करेंगे बरजोरी ।
नारायण अब निकसि द्वार ते, छूटौ नहिं बनके भोरी ।


मैं तो मलूँगी गुलाल तेरे गालन में

गाल गुलाल नैन में कजरा, बेनी गुहों तेरे बारन में ।
आज कसक सब दिन की काढ़ूँ, बेंदी दऊँ तेरे भालन में ।
चन्द्रसखी तोहि पकरि नचाऊँ, वीर बनूँ ब्रजबालन में ।


गलियन बिच धूम मचावै री

ग्वालबाल लिये कुँवर कन्हैया, नित उठ भोरे हि आवै री ।
हाथ अबीर गुलाल फेंट भर, गागर रंग ढुरावै री ।
सुनि अति हि ऊधम रसिया को, जियरा बहुत डरावै री ।
बाजत ताल मृदंग बाँसुरी, गारी और सुनावै री ।
सूरदास प्रभु की छवि निरखत, नैनन हा-हा खावै री ।


सीता चरेहैं मिरग तेरी बारी

कौन री बारी की बार करैगौ कौन करैगौ रखबारी ।।
लछमन देबर बार करैगौ राम करैगौ रखबारी ।।


चलो अैयो श्याम मेरे पलकन पै

तू तौ रे रीझयो मेरे नवल जोवना, मैं रीझी तेरे तिलकन पै ।
तू तौ रे रीझयो मेरी लटक चाल पै, मैं रीझी तेरी अलकन पै ।
पुरुषोत्तम प्रभु की छबि निरखै, अबीर गुलाल की झलकन में ।


खेलैं नन्द दुलारो हुरियाँ री

रंग महल में खेल मच्यो जहाँ, राधा लहुरि बहुरियाँ री ।
रंग गुलाल उड़ेलनि डारें, ललिता आदि छुहरियाँ री ।
वृन्दावन हित निरखि प्रशंसित, बाला रूप जुहरियाँ री ।


डोरी डालूँगी महल चढ़ अैयो रसिया

पौरी में मेरो सुसर सोवत हैं, आँगन में ननदुल दुखिया ।
ऊँची अटरिया पलंग बिछ्‌यो है, तोषक गिलम गलीचा तकिया ।
रसिक गोविन्द अभिराम श्यामघन, वहीं तेरी तपन बुझाऊँ रसिया ।


रसिया आयौ महल खबर कीजौ

जब रसिया गोंड़े में आयौ, भर लोटा अरग दीजौ ।।१।।
जब रसिया दरबाजे पै आयौ, हाथ पकरि भीतर लीजौ ।।
जब रसिया महलन में आयौ, अधरामृत रस प्याय दीजौ ।।२।।
जब रसिया सेजन पै आयौ, छतियाँ सों लिपटाय लीजौ ।।
पुरुषोत्तम प्रभु कुँवर रसिक, याके मन की तपन बुझाय दीजौ ।।३।।


मेरौ पिय रसिया री सुन री सखी तेरौ दोष नहीं री

नवल लाल कौ सब कोउ चाहत, कौंन-कौन के मन बसिया री ।
एकन सों नयना जोड़े, एकन सों भौंह मरोरे, एकन को मुख हसिया री ।
कृष्णजीवन लछिराम के प्रभु, माई संग डोलत पूर्ण शशिया री ।


आज यहीं रहो छैल नगरिया में

घर के बलम कूँ मीसी कूसी रोटी, रसिया कूँ पूवा थरिया में ।
घर के बलम दार मोठ की, रसिया को भात छबरिया में ।
घर के बलम कूँ खाट खरैरी, रसिया कूँ पलंग अटरिया में ।
पुरुषोत्तम प्रभु छैल हमारे, तेरे खिलौना मेरी अंगिया में ।


नित आयो कर लाला तोते सब राजी

सासहु राजी ससुर हू राजी, कहा करै बलमा पाजी ।
उरद की दाल गेंहूँ के फुलका, बेंगन साग चना भाजी ।
पुरुषोत्तम प्रभु की छवि निरखै, रसिया सों मेरो मन राजी ।


होरी आई श्याम मेरी सुध लीजो

मैं हूँ सास ननद के बस में, मेरी गलियन फेरा दीजो ।
खेलन मिस अैयो मेरे अँगना, जीवन कौ कछु रस लीजो ।
पुरुषोत्तम प्रभु की छबि निरखै, हियरा ते लिपटाय लीजो ।


मोहि दै दे दान घूँघट वारी

खोल घूँघट मैं दान लेउँगो, मूठ गुलाल गालन मारी ।
फूल सुहाग हार पहराऊँ, सुन्दरी छोड़ो लाजन सारी ।
रसिक श्याम की बतियाँ सुनकै, मुदित भई है सुकुँवारी ।


मृगनैनी नारि नवल रसिया

अतलस कौ याको लंहगा सोहै, झूमक सारी मन बसिया ।
अँगुरिन में मुँदरी रतनन की, बीच आरसी मन बसिया ।
बाँह भरा बाजूबंद सोहै, हिये हमेल दियै छतियाँ ।
बड़ी-बड़ी अँखियन कजरा सोहै, टेढ़ी चितवन मन बसिया ।
गोरी-गोरी बँहियन हरी-हरी चुरियाँ, बंद जंगाली मन बसिया ।
रंग महल में सेज बिछाई, लाल पलंग पचरंग तकिया ।
पुरुषोत्तम प्रभु की छबि निरखै, सबै छोड़ मैं ब्रज-बसिया ।


गौने आई एक नारि बड़ी भोरी

गोरौ बदन बंक वाकी चितवनि, बड़े-बड़े नैन उमर थोरी ।
कै तो वाके चोरौ माखन, कै चलि संग खेलौ होरी ।
रसिक गोविन्द अभिराम श्यामघन, बहुत गई रह गई थोरी ।


मत मारै छैल मेरे लग जायेगी

छरी गुलाब की बहुत कटीली, गोरे अंग में चुभ जायेगी ।
स्यालू सरस कसब कौ लंहगा, खासा की अंगिया दरक जायेगी ।
भकुटी भाल तिलक केसर कौ, कजरा की रेख बिगर जायेगी ।
पुरुषोत्तम प्रभु कहत ग्वालिनी, चरनन माहि लिपट जायेगी ।


ककरेजी तेरो चीर कहाँ भीज्यौ

जो तू कहत है पनियाँ भरन गई, मैं जान्यों नन्द को रीज्यौ ।
फागुन मास लाज अब कैसी, फिर पीछे बदलो लीजौ ।
गोविन्द प्रभु सों फगुवा लैके, अंकन भरि मन कौ कीजौ ।


रसिया मोय मोल मुल्याय लीजो

जो रसिया मोय हलकी जानै, कांटे पै तुलवाय लीजो ।
जो रसिया मोय पतरी जानै, अपनो जोर जमाय लीजो ।
पुरुषोत्तम प्रभु कुँवर लाड़िले, तन की तपन बुझाय लीजो ।


जागे मेरी सास अटारी में

पौरी खोल चलो मत अइयो, सोवै ननद तिवारी में ।
सुसर की रीति बड़ी है खोटी, डारै हाथ कटारी में ।
अब घनश्याम फेर तुम अैयो, आधी रात अन्ध्यारी में ।


उड़ जा रे भँवर तोहि मारूँगी

उड़ि भँवरा छतियाँ पै बैठ्यो, कैसे बोझ सम्हारुँगी ।
एक भँवर सो प्रीति हमारी, दूजो नाहिं निहारुँगी ।
पुरुषोत्तम प्रभु भँवर हमारे, तन मन जोबन वारुँगी ।


ब्रज कौ दिन दूलह रंग भर्‌यो

हो-हो होरी बोलत डोलत, हाथ लकुट सिर मुकुट धर्‌यो ।
गाढ़ै रंग-रंग रंग्यो ब्रज सगरो, फाग खेल को अमल पर्‌यो ।
वृन्दावन हित नित सुख बरषत, गान तान सुनि मन जु हर्‌यो ।


हरि रसिया खेलत हैं होरी

मोर पखा मूठा सिर डोलत, झूमक दै नाचत गोरी ।
कनक लकुट लिये ब्रज नागरि, मुसकत है थोरी-थोरी ।
कर जेरी नग जटित श्याम के, अबीर गुलाल भरे झोरी ।
खेलत श्री ब्रजराज पौरि पै, होत परस्पर बरजोरी ।
वृन्दावन हित धाई-धाई, धरत भरत रंग दुहूँ ओरी ।


 

 

वृन्दावन रास चर्चा

Jai Jai Shree Radhe Shyam!

ब्रज के रसिक संत मानते हैं कि दिव्य आनंद श्रीधाम वृंदावन में है। यह वेबसाइट राधा कृष्ण की भक्ति में इस आनंद और ब्रज धाम की पवित्रता की महिमा साझा करती है|

जीवनी
विशेष

Rasik Triveni

वाणी जी