तब लगि विषयन में मन धावै। जब लगि मन्द मनोहर हाँसी, हिय में नाहिं समावै। कठिन अभाग न मिटिहै तौ लौं, प्रीति हिये नहिं आवै ॥ तासौं पुनि-पुनि गोद पसारे, आरत टेरि सुनावै। दिल दरदीली सहज किशोरी, 'भोरी' भाग जगावै ॥ -भोरी सखी, प्रेम की पीर, 353
हे प्यारी जू! यह चंचल मन तब तक विषयों में दौड़ता रहता है जब तक आपकी मन्द-मधुर मुस्कान हृदय में समा नहीं जाती। दुर्भाग्य का अंत भी तब तक नहीं होता जब तक आपके प्रति प्रेम जाग्रत न हो जाए। इसलिए, भोरीसखी जी अपनी पीड़ा आपको पुकार-पुकारकर सुनाती हैं और आँचल पसारकर बार-बार विनती करती हैं कि कृपया मेरे भाग्य को जागृत करें, क्योंकि आपका कोमल हृदय दूसरों के दुःख को अपना समझकर सहायता करने को तत्पर रहता है।
हे किशोरी जी! इस मन की चंचलता विषयों की ओर तब तक ही दौड़ती रहती है, जब तक आपकी वह मन्द-मधुर मुस्कान इस हृदय में पूर्ण रूप से समा नहीं जाती। आपकी मुस्कान जो शीतलता और मधुरता का ऐसा समंदर है, जिसमें समा जाने पर कोई और आकर्षण शेष ही नहीं रहता। जब यह मन आपकी उस मुस्कान में खो जाता है, तभी यह विषयों की मायावी लहरों से मुक्त हो पाता है। और यही नहीं, इस दुर्भाग्य का अंत भी तब तक संभव नहीं है जब तक इस हृदय में आपके प्रति प्रेम का जागरण नहीं हो जाता। जब तक आपकी प्रेम छवि इस हृदय में बसी नहीं, तब तक मन के भटकाव का सिलसिला चलता रहेगा।
श्रीहित भोरीसखी जी कहती हैं कि हे किशोरी जी! मैं इस चंचल मन की व्यथा और अपनी असहनीय पीड़ा को आपके सामने बार-बार प्रकट कर रही हूँ। मैं अपने आँचल को पसारकर, अपने दुःखों की गाथा आपको पुकार-पुकार कर सुनाती हूँ, क्योंकि मैं जानती हूँ कि आपका हृदय सहज रूप से अत्यन्त कोमल है। आप तो करुणा की प्रतिमूर्ति हैं, जो दूसरों के दुःख-दर्द को अपना मानकर तुरन्त सहायता के लिए दौड़ पड़ती हैं। मेरी व्यथा केवल मेरी नहीं, यह आपके प्रेम और करुणा की भी पुकार है।
आपका कोमल हृदय जो करुणा और दया से भरा हुआ है, दूसरों के कष्ट में भी स्वयं को ही कष्ट मानता है। इसी कारण, मैं निरन्तर आपको पुकारती हूँ, क्योंकि मेरा भाग्य आप ही जागृत कर सकती हैं। आपका एक कृपा-भरा दृष्टि-क्षण मेरे जीवन को बदलने के लिए पर्याप्त है। इसलिए, मेरी इस पुकार में मेरी हर आशा समाहित है। यह पुकार केवल एक भक्त की करुण याचना नहीं है, बल्कि अपने आराध्य से जीवन की सभी बाधाओं और दुर्भाग्यों से मुक्ति पाने की अंतिम आशा है।
आपका कोमल और करुणामयी हृदय मेरी इस पुकार को सुनकर निश्चय ही मेरे दुर्भाग्य को मिटाने में सहायक होगा। मैं पुनः पुनः इस आस में हूँ कि आपकी करुण दृष्टि मेरी ओर पड़े और मेरे भाग्य को आप अपने करुणामयी कृपा से जागृत करें। मेरी याचना में जितनी बार मैं आपको पुकारती हूँ, उतनी बार आपके करुणा से भरे हृदय के प्रति मेरी श्रद्धा और प्रेम बढ़ता जाता है। यही प्रेम का जागरण, यही करुणा की याचना, मेरे मन को स्थिर कर आपकी ओर दौड़ने से रोक देती है और मुझे आपके चरणों की शरण में स्थिर कर देती है।