सर्वोपरि म्हारी महरानी।
जीत लियौ घनश्याम लाड़ली, स्ववस एक रस दानी।
ललितादिक संग सखी सहचरी, वृंदावन रज धानी।
ब्रह्मा विष्णु शंभु सनकादिक, महिमा नैकु न जानी।
वेद पुराण सबै पचि हारे, श्री हरिवंश बखानी।
भोरी ओर कृपा करि हेरौ, अलबेली ठकुरानी।
– श्री भोरी सखी, प्रेम की पीर (38)
हमारी महारानी श्री राधा रानी सर्वश्रेष्ठ हैं, जिन्होंने स्वयं श्री श्यामसुंदर, जो तीनों लोकों को मोहित करने वाले हैं, को भी अपने प्रेम के बंधन में बांधकर विजयी किया है। वह प्रेमामृत की अद्भुत दानी हैं। उनकी संगिनी सखियों का एक विशाल समूह उनके साथ रहता है, और उनकी राजधानी स्वयं श्रीधाम वृंदावन है।
यहाँ तक कि ब्रह्मा, विष्णु, शिव और सनकादिक जैसे महान देवता भी उनकी महिमा को पूर्ण रूप से समझ नहीं पाए हैं। वेद और पुराण भी उनकी महिमा का सम्पूर्ण वर्णन करने में असमर्थ रहे हैं, क्योंकि उनकी लीला और निकुंज रहस्य अद्वितीय और अलौकिक है। लेकिन श्री हरिवंश महाप्रभु (हित सजनी) ने अपनी वाणी में इस महिमा का वर्णन किया है।
श्री भोरी सखी जी कहती हैं, “हे अलबेली ठकुरानी, मुझ पर कृपा करें और एक बार अपनी कृपा दृष्टि से मुझे निहारें।”
यह व्याख्या राधा रानी के प्रति समर्पण, भक्ति और उनके प्रेम की अनमोल महिमा का सजीव चित्रण करती है।