Vrindavan Ras Charcha

रहौ कोऊ काहू मनहि दिये।- श्री हित स्फुट वाणी पद 20

Hit Safut Vani - Sacred Teachings by Shri Hit Harivansh Mahaprabhu Ji

रहौ कोऊ काहू मनहि दिये।

मेरे प्राणनाथ श्री श्यामा सपथ करौं तृण छिये ।।

जे अवतार कदंब भजत हैं धरि दृढ़ ब्रत जु हिये।

तेऊ उमगि तजत मर्जादा वन बिहार रस पिये।।

खोये रतन फिरत जे घर-घर कौन काज जिए ।

(जैश्री) हित हरिवंश अनत सचु नाहीं बिनु या रजहिं लिये।।

श्री हित हरिवंश महाप्रभु, श्री हित स्फुट वाणी (20)

इस पद में श्री हित हरिवंश महाप्रभु अपने ह्रदय की गहनतम भावनाओं को उजागर करते हुए, श्री राधारानी के प्रति अपनी अखंड निष्ठा की शपथ लेते हैं, जो अडिग और अचल है।

“कोई चाहे जहाँ भी मन लगाए, परंतु मैं तो इस तृण को स्पर्श कर शपथपूर्वक कहता हूँ कि मेरे जीवन, मेरे प्राण, केवल और केवल मेरी प्रिय श्री श्यामा के चरणों में ही समर्पित हैं।”

जो लोग कड़े व्रत लेकर अनेक अवतारों की पूजा करते हैं, वे भी जब वृन्दावन के प्रेम रस का पान कर लेते हैं, तो उमंगित होकर अपनी सारी मर्यादाओं को त्याग देते हैं। उस प्रेम के प्रभाव से वे सब बंधन भूल जाते हैं और प्रेमविहीन जीवन का कोई अर्थ नहीं रह जाता।

और वे लोग, जो अपना सबसे अनमोल रत्न खोकर घर-घर भटकते हैं, मानो भीख मांग रहे हों—ऐसे जीवन का क्या मूल्य है? क्या अर्थ है उनके जीने का?

श्री हित हरिवंश महाप्रभु यह स्पष्ट करते हैं कि जब तक वृन्दावन की रज प्राप्त नहीं होती, तब तक अन्यत्र कहीं भी शांति नहीं मिल सकती। सच्ची शांति और संतोष केवल उस पवित्र भूमि के आंचल में ही मिल सकता है।”

वृन्दावन रास चर्चा

Jai Jai Shree Radhe Shyam!

ब्रज के रसिक संत मानते हैं कि दिव्य आनंद श्रीधाम वृंदावन में है। यह वेबसाइट राधा कृष्ण की भक्ति में इस आनंद और ब्रज धाम की पवित्रता की महिमा साझा करती है|

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Rasik Triveni

वाणी जी