Vrindavan Ras Charcha

हे वृषभानु सुते ललिते, मम कौन कियो अपराध तिहारो?

Shree Radha Baba's verse 'He Vrishabhanu Sute Lalite' expressing deep longing for Radha Rani’s mercy.

हे वृषभानु सुते ललिते, मम कौन कियो अपराध तिहारो?

काढ़ दियो ब्रज मंडल से, अब और भी दंड दियो अति भारो।

सो कर ल्यो, आपनों कर ल्यो, निकुंज कुटी यमुना तट प्यारो।

आप सों जान दया के निधान, भई सो भई अब बेगी सम्हारो।

श्री राधा बाबा

यह जो पद है, श्री राधा बाबा की वेदना का जीवंत चित्रण है। इसमें उनके हृदय की गहन पीड़ा, वृंदावन धाम से वियोग की असहनीय यातना और राधारानी की करुणा की याचना स्पष्ट झलकती है।

“हे वृषभानु सुता, हे प्यारी ललिता सखी, मैंने ऐसा कौन सा अपराध किया है कि आपने मुझे ब्रजमंडल से निकाल दिया? इस वियोग का भार इतना अधिक है कि अब सहा नहीं जाता। अगर इससे भी अधिक कोई दंड आपके पास है, तो वह भी स्वीकार है। परंतु, हे दया की सागर राधारानी, आपसे यही विनती है कि जो हो गया, सो हो गया। अब कृपा करके मेरे अपराधों को क्षमा कर दीजिए और मुझे फिर से अपनी शरण में ले लीजिए।”

यह पद केवल एक प्रार्थना नहीं है, यह हृदय की गहनतम पुकार है, घर वापसी की आतुरता है। श्री राधा बाबा, जो ब्रज की रज में लिपटे प्रेम और भक्ति के रसिक थे, इस पद में वियोग की ऐसी पीड़ा व्यक्त कर रहे हैं जो असहनीय है। यह एक ऐसे संत की पुकार है जो अपने प्रिय धाम, श्री वृंदावन से दूर हो गया है, और हर पल उस वियोग का भार उनके हृदय को चीर रहा है।

“अब औरहु दंड दियो अति भारो”—यह पंक्ति उस पीड़ा को प्रकट करती है, जहां बाबा कहते हैं कि अगर कोई और दंड भी है, तो वह भी सहर्ष स्वीकार है, परंतु यह वियोग का भार अब सहन नहीं हो रहा। यह करुण पुकार श्री राधा बाबा की जीवनी में स्पष्टता देखी जा सकती है, जो अपने आराध्य के हर दंड को भी उनके प्रेम में निमगन हो कर सहने को तैयार है, क्योंकि उसमें भी उनके करुणामयी स्वरूप की झलक है।

यह पद एक ऐसे संत का चित्रण करता है, जो हर पल अपने प्राणों की आशा—श्री राधारानी की एक झलक पाने के लिए तड़प रहे है। श्री वृंदावन से दूर रहना उसके लिए जीवन का सबसे बड़ा दंड है। श्री राधा बाबा ने इस पद में जो पीड़ा उकेरी है, वह पाठक के हृदय को छू जाती है, उसे उस अनंत विरह की गहराई में खींच ले जाती है, जहां केवल एक ही आशा बचती है— श्री राधारानी की कृपा।

श्री राधा बाबा की इस पीड़ा में एक अव्यक्त आशा छिपी है। यह वियोग केवल भौतिक नहीं, यह आध्यात्मिक वियोग है—प्रेमी और प्रेमास्पद के बीच का वह अंतराल जो हर क्षण एक असहनीय पीड़ा के रूप में अनुभव होता है। बाबा की प्रार्थना में यही विनम्र निवेदन है कि जो कुछ हुआ, वह हो चुका, अब हे दया की मूर्ति, हे करुणामयी श्री राधा, मुझे अपने श्री वृंदावन की कुंज कुटीर में फिर से स्थान दे दीजिए।

इस पद को पढ़कर कोई भी व्यक्ति उस गहन दुःख का अनुभव करेगा, जो श्री राधा बाबा ने सहा होगा। श्री वृंदावन धाम से यह वियोग केवल शरीर का नहीं, आत्मा का है—ऐसा वियोग जो जीवन का सार ही छीन लेता है। इस पद में व्यक्त हृदय की यह तड़प,श्री राधारानी के चरणों में वापसी की उत्कट आकांक्षा है, जो हर भक्ति करने वाले के हृदय में गूंजती है।

इस वेदना भरी पुकार को पढ़ने वाला व्यक्ति राधा बाबा के हृदय की उस पीड़ा को महसूस किए बिना नहीं रह सकता, जो श्री वृंदावन धाम से वियोग की वेदना और उस धाम में पुनः वापसी की आशा में लिपटी हुई है।

वृन्दावन रास चर्चा

जय जय श्री राधे श्याम

ब्रज के रसिक संत मानते हैं कि दिव्य आनंद श्रीधाम वृंदावन में है। यह वेबसाइट राधा कृष्ण की भक्ति में इस आनंद और ब्रज धाम की पवित्रता की महिमा साझा करती है।

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