लागी रट, राधा श्रीराधा नाम।
ढूँढ़ फिरी वृन्दावन सगरौ, नन्द ढिठौना स्याम॥ [1]
कै मोहन या खोर साँकरी, कै मोहन नँदगांम।
श्री व्यासदास की जीवन राधे, धन बरसानौ गाँम॥ [2]
– श्री हरिराम व्यास, व्यास वाणी, पूर्वार्ध (39)
अब मैंने श्री राधा नाम की रटना लगा दी है। समस्त वृंदावन में खोजने का प्रयास किया, पर नंद के प्यारे नटखट श्री श्यामसुंदर कहीं भी दिखाई नहीं दिए।
आखिर में मैं श्री राधारानी के धाम बरसाना पहुँचा, जहाँ मनमोहन श्रीकृष्ण कभी संकरी खोर में दिखे, तो कभी नंदगांव में। श्री हरिराम व्यास जी कहते हैं, “बरसाना, जो मेरी प्राण-जीवन और धन, श्री राधारानी का धाम है, वास्तव में धन्य-धन्य है।
यह पद व्यास जी की गहरी भक्ति, प्रेम और राधारानी के प्रति अटूट समर्पण का प्रतीक है, जहाँ राधा नाम उनके हृदय की धड़कन बन जाता है और उनके भगवान को खोजने का एकमात्र सहारा भी।