वृंदाबन की सोभा देखे मेरे नैन सिरात।
कुंज निकुंज पुंज सुख बरसत हरषत सबकौ गात॥ [1]
राधा मोहनके निज मंदिर महाप्रलय नहीं जात।
ब्रह्मातें उपज्यो न अखंडित कबहूँ नाहिं नसात॥ [2]
फनिपर रवि तरि नहिं बिराट महँ नहिं संध्या नहिं प्रात।
माया कालरहित नित नूतन सदा फूल फल पात॥ [3]
निरगुन सगुन ब्रह्मतें न्यारौ बिहरत सदा सुहात।
ब्यास बिलास रास अद्भुत गति, निगम अगोचर बात॥ [4]
– श्री हरिराम व्यास, व्यास वाणी, पूर्वार्ध (6)
श्री हरिराम व्यास जी इस पद में श्रीधाम वृन्दावन की अनुपम महिमा का वर्णन करते हैं। वे कहते हैं कि वृन्दावन की अद्भुत शोभा मेरे नेत्रों को आनंदित कर रही है। वहाँ के कुंज-निकुंजों में प्रेम और आनंद का अनवरत प्रवाह हो रहा है, जो सम्पूर्ण वातावरण को हर्षित कर रहा है। वृन्दावन की इस दिव्य छटा को देखकर मेरे नेत्रों से प्रेमाश्रु बहने लगते हैं और हृदय आनंदमग्न रहता है।【1】
महाप्रलय के समय, जब ब्रह्माजी की समस्त सृष्टि नष्ट हो जाती है, तब भी वृन्दावन की शाश्वतता पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता। वहाँ, श्री राधा मोहन अपने दिव्य प्रेम मंदिर में विराजमान रहते हैं क्योंकि यह स्थान ब्रह्माजी के निर्माण से उत्पन्न नहीं हुआ है और न ही इसका कोई नाश होता है।【2】
वृन्दावन की यह दिव्यता न तो शेषनाग के फण पर स्थित है, न सूर्य के अधीन है और न ही यह विराट ब्रह्म के भीतर है। वहाँ कोई रात्रि या दिन का भेद नहीं है। यह धाम माया और काल के प्रभाव से मुक्त है और यहाँ के पेड़-पौधे, फूल-फल सदा नवीन रहते हैं।【3】
व्यासजी कहते हैं कि वृन्दावन में श्री राधा-कृष्ण का स्वरूप सगुण और निर्गुण ब्रह्म से भी विलक्षण है, और वहाँ वे सदा दिव्य लीलाओं का आनंद लेते रहते हैं। उनका रास-विलास इतना अद्भुत है कि वेद और पुराण भी इसे पूर्ण रूप से वर्णन नहीं कर पाते।【4】