तब लगि विषयन में मन धावै। – भोरी सखी, प्रेम की पीर
तब लगि विषयन में मन धावै। जब लगि मन्द मनोहर हाँसी, हिय में नाहिं समावै। कठिन अभाग न मिटिहै तौ लौं, प्रीति हिये नहिं आवै ॥ तासौं पुनि-पुनि गोद पसारे, आरत टेरि सुनावै। दिल दरदीली सहज किशोरी, ‘भोरी’ भाग जगावै ॥ -भोरी सखी, प्रेम की पीर, 353 हे प्यारी जू! यह चंचल मन तब तक […]
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